एक भाई का सवाल है कि अल्लाह ने हमें क्यों पैदा किया दुनियाँ क्यों बनाई, क्या अल्लाह को चैन नहीं था ?
यह कुछ ऐसे विचार वसवसे या सोच होती है जो अक्सर लोगों के दिमाग में आते हैं, और यह कोई बुरी बात नहीं होती, आज जो हम बड़ी बड़ी खोजे और विज्ञान के क्षेत्र में इतनी उन्नति देख रहे हैं इसका पहला चरण इंसानी विचार ही होते हैं, जब विचार मन में आते हैं तभी इंसान तहकीक की तरफ पहला कदम बड़ाता है, अपने विचारों की सच्चाई जानने के लिए बड़ाया गया एक कदम इंसान की जिन्दगी का टर्निंग पोईंट बन जाता है, इन्सान के सारे कर्म ही उसकी सोच और नियत पर निर्भर है, पैगम्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहो अलैहिवसल्लम ने शिक्षा दी है कि अल्लाह इंसान के कर्मों का फल उसकी नियत और सोच के मुताबिक ही देगा।
मेरे भाई हम इंसानों की सोच सीमित है हमारा आपका दिमाग एक लिमिटेड दायरे में ही काम करता है तो भला हम अल्लाह के बारें में कैसे समझ सकते हैं कि उसने यह काम क्यों किया ?
इतनी उन्नति करने के पश्चात आज विज्ञान समुन्द्र तक की सटीक जानकारी नहीं रखता जो कि पृथ्वी पर ही है , अभी तक उसकी गहराई का भी सही आकलन नहीं है । लेकिन उसके दावे आजकल सूर्य को छूने के हो रहे है , साइंस इस ब्रह्माण्ड के रहस्य को 0.1% भी समझ नहीं पाया है तो सोचो हम उस अल्लाह के बारें में कैसे सोच सकते है कि उसने यह क्यों किया ?
पूरे ब्रह्माण्ड में हमारी पूरी पृथ्वी की हैसियत एक कण के बराबर भी नहीं है, तो सोचिये हमारे शहर गाँव और हमारी खुद की हैसियत क्या होगी ?
इस पूरे ब्रह्माण्ड से पृथ्वी ही गायब हो जाये क्या फर्क पढ़ेगा क्यों कि एक कण के होने न होने से कुछ भी लाभ हानि नहीं होती, तो सोचिये अब हमारे और आपके होने न होने से क्या होगा ?
एक नवजात बच्चा सोचे मुझे क्यों नहलाया जा रहा आखिर इससे क्या फायदा हो रहा है, बे वजह मुझे कष्ट दिया जा रहा है , आखिर क्या जरूरत थी इन लोगों को?
इन लोगों को चैन नहीं है क्या ?
आप स्वयं विचार करें कि बच्चे के मन में उठ रहे यह प्रश्न मूर्खतापूर्ण है या नहीं ? क्यों कि जो हम जानते है वो बच्चा नहीं जानता और न ही समझता है , लेकिन इस बात को हम समझते है कि बच्चे को नहलाना उदेश्य से खाली नहीं है, अगर नहीं नहलाया तो बीमार हो जायेगा ।
ठीक इसी प्रकार हम अपने छोटे से बच्चे को जब पहली बार स्कूल लेकर जाते है तो वो रोता है, नहीं जाना चाहता , लेकिन हम फिर भी उसे भेजते है सख्ती भी करते है अगर बच्चा ज्यादा जिद कर रहा है तो हमारे आपके सामने भी उसकी टीचर उसे डांटती है और हम खड़े खड़े देखते है , बच्चा सोचता है कि आखिर मुझे क्यों मेरे पिता अपने से दूर कर रहे है , मुझपर क्यों यह हालात डाल रहे है , आखिर क्या जरूरत है इस सबकी ।
यहाँ भी बात वही है जो हम देख रहे है वो बच्चा नहीं देख पा रहा है, बच्चा आज और अभी के बारे़ में सोचता है लेकिन हम उसके उस जीवन के बारे में सोच और समझ रहे है जो उसको आगे चलकर जीना है ।
पवित्र क़ुरआन की सूरह नं. 51 की आयत नं.56 ब्रह्माण्ड के निर्माता ने स्वयं इसका उत्तर दिया है..
“वमा खलकतुल जिन्ना वल इन्सा इल्लालियअ़बुदून”
फरमाया अल्लाह ने मैने मनुष्यों और जिन्नातों को अपनी उपासना के लिये पैदा किया ।
उपासना या इबादत क्या ?
अपने सम्पूर्ण जीवन को अल्लाह के आदेशानुसार व्यतीत करने का नाम उपासना या इबादत है ।
हम और आप देखते हैं कि हमारे और आपके घरों में कोई नन्ना मेहमान आने वाला होता है तो हम उसके दुनिया में आने से पहले ही उसके जन्म के समय की और जन्म के बाद की वह सभी तैयारियाँ पहले से ही कर लेते है जिससे उसे किसी कठिनाई का सामना न हो, ठीक इसी तरह हम ठंठ आने से पहले ठंठ की और बरसात आने से पहले बरसात की और गरमी आने से पहले गरमी की तैयारियाँ कर लेते है।
ठीक इसी प्रकार अल्लाह ने जब इंसान को पैदा किया तो उसके पैदा करने से पहले ही उसके जीवन से जुड़ी हर वस्तु का पैदा किया, जिसका पैदा करना भी अनिवार्य था सो उसने इस संसार यानि दुनियाँ की रचना की । यानि सूरज चाँद सितारे हवा पानी इत्यादि चीजों को पैदा किया, क्यों कि इन चीज़ो के बिना मानवीय जीवन असम्भव है , इसलिये अल्लाह ने दुनियाँ को बनाया।
लेखक: अब्दुर्रहमान ह्युमनिस्ट