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आर्थिक बहिष्कार या खुदाई दा’वा ?

आज देश में अखंण्ड भारत की बात होती है, लेकिन कुछ लोगों ने देश को एक अनदेखे बटवारे में विभाजित कर दिया है।
धर्म समावेशी होता हैं, बहिष्कृत करने वाला नहीं। ” देश में आज यह मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की स्थित “यह अत्यंत खेदपूर्ण स्थिति है।

आज पश्चिमी देश दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे है कोई स्मार्ट शिटी बना रहा है तो कोई मंगल पर बस्ती बसाने की सोच रहा है और कुछ लोग अपने देश की बस्तियाँ उजाड़ने इबादगाहों को आग लगाने, हर दिन किसी न किसी रूप में किसी न किसी के बहिस्कार में बिजी होकर देश की हवा को जहरीला बनाने में बिजी है, हवा तो कब की प्रदूषित कर दी गई है अब लोगों के दिल दिमाग ही बचे है वह भी पूरी तरह से प्रदूषित करदो ।

आज नेपाल, बाँग्लादेश और पाकिस्तान जैसे हमारे छोटे छोटे पड़ोसी देश जिनकी कोई औकात नहीं है वह हमें नसीहत कर रहे है और हम बात विश्वगुरू बनने की करते हैं। क्या ऐसे और इन हालतों में बनेगें विश्वगुरू ?

लेकिन आज कुछ लोगों को इन बातों से कोई समस्या नहीं है क्यों कि उनकी नजर में समस्या तो देश का मुसलमान है, ऐसे लोगों ने इंसान के तौर पर अपनी ही निगाह में अपनी साख घटा ली है, जरा अंतरमन में झांक कर तो देखिये..
आर्थिक दुनिया में किसी एक समुदाय के बहिष्कार की बात इतनी भोली और मनोरंजक है कि इस पर गंभीरता से विचार करने की जगह चुटकी लेने का मन करता है, कि तुम अपने ही देश के मुसलमानों को बर्दास्त नहीं कर पा रहे और बात अखंण्ड भारत की करते हो??

देश में मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार के लिये, उन्हे अपनी दुकानों और फैक्ट्रियों से काम से निकालने के लिये पुलिस की सुरक्षा के साथ रैली निकलती है पंचायते होती है, फेरी वालों का आधार चेक होता है ,बस्ती के बाहर बोर्ड लगते है कि मुस्लिम फेरी वालों का आना मना है, मकान खरीदने बेंचने किराये पर न देने के पोस्टर दीवारों पर चिपकाते हो क्या ऐसे देश अखंण्ड भारत बनेगा ?

आज ऐसे माहोल में भी देश के सभी धर्मों का एक बड़ा वर्ग हमें मुसलमानों के साथ खड़ा नजर आता है वह लगातार विडिओ पोस्ट और ट्वीट करते हैं, यह सब देखकर मन में थोड़ी शान्ति पैदा होती है, कि यह लोग कितना भी देश की हवाओं को जहरीला करदे लेकिन इस देश से देश के लोगों की सामाजिक मुहब्बत को पूरी तरह खत्म नहीं कर सकते है कभी । देश के ऐसे सभी लोग सम्मान और प्रसंशा के पात्र है जिन्होने अपनी पूरी ताक़त इंसान को इंसान बनाये रखने में लगा रखी है। और यही वह लोग है जो इन आर्थिक बहिष्कार करने वालों को जवाब देगा।

मैं इन आर्थिक बहिष्कार करने वालो से बस इतना ही कहूगाँ कि लोगों को रोजी रोटी आजीविका देना अल्लाह/परमेश्वर का काम है , अगर वह देने पर आये तो पूरी दुनिया मिलकर उसे रोक नहीं सकती, पवित्र क़ुरआन की पहली सूरह की पहली आयत है…

“अलहम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन”
जिसका अर्थ है कि समस्त प्रसंशायें अल्लाह/परमेश्वर के लिये जो तमाम जगत का पालने वाला है।
वह ऐसा पालने वाला है जिसने हमें हमारी माँओं के पेट में पाला और हमारे दुनियाँ में आने से पहली हमारी आजीविका हमारी माँ के सीने में दूध के रूप में भेजी, वह अंडे के अंदर पालता है, वह पानी के अंदर पालता है, वह पत्थरों और पहाड़ो के बीच पालता है, और तुम उसकी भेजी आजीविका और उसके बंदे के बीच बाधक बनने का काम कर रहे हो रुकावटे डाल रहे हो, क्या तुम स्वयं को लोगों का परवरदिगार पालनहार समझ रहे हो, कि तुम बहिष्कार करोगे और देश की एक बड़ी आबादी भूख से तड़प तड़प कर मर जायेगी ?

क्षमा मांगों पालनहार से कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे इस गुनाह और पाप की सजा में तुम्हारी ही आजीविका पर रोक लगा दी जाये, बहुत से लोग पहले भी हुये है जिन्होने खुदाई-दा’वा किया और अंजाम दुनिया ने देखा।

संस्कृत मे एक श्लोक है..
“विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय।
खलस्य साधोर् विपरीतमेतद् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय॥”
(इस श्लोक का अर्थ है दुष्टों की बुद्धि विवाद के लिए, धन के उन्माद के लिए, और दूसरों पर अत्याचार करने की शक्ति के लिए होती है। सज्जन लोग इसका उपयोग ज्ञान, दान और दूसरों की सुरक्षा के लिए करते हैं)

धर्म नाम है सीधे रास्ते का पवित्र क़ुरआन इसे सिराते मुस्तकीम कहता है, सीधे रास्ते की शिक्षा देता है, सीधे रास्ते का मार्गदर्शन करता है, सीधे रास्ते की ओर लोगो को बुलाता है, और सीधे रास्ते की प्रार्थना और दुआ मांगने की नसीहत करता है।
पवित्र क़ुरआन की पहली सूरह प्रत्येक नमाज़ में पढ़ना जरूरी, कम्पलसरी यानि अतिअनिवार्य है, इसी सूरह की पहली आयत मैने ऊपर लिखी थी और इसी सूरह की पाँचवी आयत में बंदा अपने रब से सीधे रास्ते पर चलने की दुआ मांगता है।
“इहदिनस सिरातल मुस्तकीम”
(हमें सीधा रास्ता दिखा)

एक ऐसा सीधा रास्ता जिसमें थोड़ी भी टेड़ न हो, क्यों कि टेड़ापन बुराई का प्रतीक है और दीन या धर्म का मूल उदेश्य हर प्रकार की बुराई को समाप्त करना होता है, अब जिसके दिल दिमाग के अंदर बुराई ने अपना घर बना लिया हो, उसके अच्छे और बुरे की सोचने की क्षमता समाप्त हो चुकी हो तो वह भला क्या लोगों के फायदे के काम कर सकता है ? और क्या ही कोई कभी अच्छी मुहिम चला सकता है ?

लेख: अब्दुर्रहमान ह्युमनिस्ट

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