जीना तो है उसी का जिसने ये राज़ जाना।
है काम आदमी का औरों के काम आना।
हम सबके पालनहार ने इंसान को पैदा किया फिर दीन धर्म अवतरित कर उसे इंसानियत सिखलाई और सच्चाई न्याय ईमानदारी का पाठ पढ़ाया, लेकिन इंसान ने स्वार्थ के वसीभूत होकर जब इन शिक्षाओ को ठुकराया और जुल्म अत्याचार अन्याय का बाजार गर्म किया तो सैकड़ो बार उस सर्व शक्तिमान ने प्राकृतिक आपदाये भेज इंसान को अपनी शक्ति और क़ुदरत से परिचित करवाया, कि अभी भी समय है ।
प्रकृति के आगे किसी का वश नहीं चलता. जो प्रकृति बच्चे की तरह इंसान की देखभाल करती है, उसे अगर गुस्सा आ जाता है, तो उसके सामने किसी की नहीं चलती. चाहे भूकंप हो या कोई और प्राकृतिक आपदा, इंसान उस वक्त बेबस और लाचार सा दिखने लगता है, सारा विज्ञान सारी खोज सब धरा का धरा रह जाता है ,
क्योंकि सम्पूर्ण विश्व को एक पल में शांत करने की ताकत प्रकृति में है।
जबकि इंसान आज भाषावाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद, धर्मवाद के अहंकार से पीड़ित हैं। हमने देखा था कि किस तरह इंसान का गर्व और घमंड, कोरोना वायरस ने मात्र एक झटके में उतार दिया था, और बिना किसी भेदभाव के सारी दुनियां को हिला कर रख दिया था।
दुनियाँ ने कई बार भूकम्प, ज्वालामुखी और सूनामी का कहर देखा है, प्रकृति बस चंद सेकेंड में दुनियाँ को तबाह कर सकती है ।
प्रकृति के छोटे छोटे झटके संकेत है उस बड़े झटके के जिसे कयामत कहते है, जिसमें सारा संसार नष्ट हो जायेगा, क़यामत के दिन के बारे में अल्लाह ने सूरह ज़िलज़ल में क्या कहा ?
सूरह की शुरुआत यह वर्णन करने से होती है कि कैसे क़यामत के दिन, पृथ्वी एक भयानक भूकंप को छोड़ देगी और “अपना बोझ फेंक देगी”। ईश्वर की प्रेरणा से, पृथ्वी उन लोगों के कार्यों की गवाह बनेगी जिन्हें उसने देखा है।
भूकंप अल्लाह के संकेतों में से एक हैं और उनका आना पूरी तरह से अल्लाह के नियंत्रण में है । आज दुनिया में जितनी भी तकनीक उपलब्ध है, भूवैज्ञानिक यह नहीं बता पा रहे हैं कि अगला भूकंप कहाँ और कब आने वाला है! अल्लाह ही जानता है कि उसका अधाब कहाँ और कब आने वाला है।
लेकिन प्रकृति ने शायद यही संदेश दिया है कि प्यार से रहो, प्यार से जियो और जीने दो । अन्यथा आज भूकम्प है, सुनामी है, कोरोना है। कल गरीना है, मगीना है।
इंसान को कभी भी अपने वक्त पर घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि वक्त तो उन नोटों का भी नहीं हुआ, जो कभी पूरा बाजार खरीदने की ताकत रखते थे।
क्या आपको पता है कि दुनियां में करोड़ों लोग भूखे पेट सोते हैं। जबकि दुनियां अपने आप को हथियारो के दम पर ताकतवर समझ रही है। अगर हथियारो से ही ताकत है तो फिर एक सुक्ष्म से विषाणु कोरोना को रोक नहीं सकते..?
जब प्राकृतिक आती है तो वह दुनिया के लोगों से चीख चीख कर कहती है, कहां हैं तुम्हारी ताकत ? जरा दिखाओ तो सही, अपनी ताकत !!
लेख: अब्दुर्रहमान ह्युमनिस्ट